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Ginger farming

इस प्रकार से अदरक की खेती करने पर होगा जबरदस्त मुनाफा

इस प्रकार से अदरक की खेती करने पर होगा जबरदस्त मुनाफा

वर्तमान समय में किसान भाई लगातार अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं ताकि वो अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। लेकिन कुछ समय से देखा गया है कि जबरदस्त मेहनत करने के बावजूद किसान भाइयों को परंपरागत फसलों से मुनाफा लगातार कम होता जा रहा है। 

ऐसे में अब किसान भाई वैकल्पिक फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं। ये फसलें कम समय में ज्यादा मुनाफा देने में सक्षम हैं। ऐसी ही एक फसल है अदरक की फसल। 

अदरक का उपयोग चाय से लेकर सब्जी, अचार में किया जाता है। इसलिए इस फसल की मांग बाजार में साल भर बनी रहती है। ऐसे में किसान भाई इस फसल को लगाकर अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

इस प्रकार की परिस्थियों में की जा सकती है अदरक की खेती

अदरक की खेती के लिए अलग से जमीन का चयन करने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती है। इसकी
खेती पपीता और दूसरे बड़े पेड़ों के बीच आसानी से की जा सकती है। 

लेकिन फसल बोने के पहले मिट्टी की जांच करना आवश्यक है। जिस मिट्टी में अदरक की फसल लगाने जा रहे हैं उस मिट्टी का पीएच 6 से 7 के बीच होना चाहिए। इसके साथ ही खेत से पानी निकालने की भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

खेत में जरूरत से अधिक पानी जमा होने पर यह फसल सड़ सकती है। जिससे किसान को नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर मिट्टी की बात करें तो इसकी फसल के लिए बलुई दोमट सबसे उपयुक्त मानी गई है।

इस प्रकार से करें अदरक की बुवाई

बुवाई के पहले खेत को अच्छे से जुताई करके तैयार कर लें। इसके बाद खेत में अदरक के कंदों की बुवाई करें। प्रत्येक कंद के बीच 40 सेंटीमीटर का अंतर रखें। कंदों को मिट्टी में 5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। 

अगर बीज की मात्रा की बात करें तो एक हेक्टेयर में बुवाई के लिए 2 से 3 क्विंटल तक अदरक के बीज की जरूरत पड़ती है। बुवाई के बाद ढालदार मेड़ बनाकर बीजों को हल्की मिट्टी या गोबर की खाद से ढक दें। बीजों को ढकते समय पानी निकासी की व्यवस्था का ध्यान रखें। 

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अदरक एक कंद है। इसलिए छाया में बोई गई फसल में अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा उपज होती है। कई बार यह उपज 25 प्रतिशत तक अधिक हो सकती है। साथ ही छाया में बोई गई अदरक में कंदों का गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि होती है।

पलवार का उपयोग करें

अदरक की खेती में पलवार का उपयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसको बिछाने से भूमि के तापक्रम एवं नमी में सामंजस्य बना रहता है। जिससे फसल का अंकुरण अच्छा होता है और वर्षा और सिंचाई के समय भूमि का क्षरण भी नहीं होता है। 

पलवार का उपयोग करने से बहुत हद तक खरपतवार पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। पलवार के लिए काली पॉलीथीन के अलावा हरी पत्तियां लम्बी घास, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग किया जा सकता है।

पलवार को फसल रोपाई के तुरंत बाद बिछा देना चाहिए। इसके बाद दूसरी बार बुवाई के 40 दिन बाद और तीसरी बार बुवाई के 90 दिन बाद बिछाना चाहिए।

निदाई, गुडाई तथा मिट्टी चढ़ाना

अदरक की फसल में निदाई, गुडाई फसल बुवाई के 4-5 माह बाद करना चाहिए। इस दौरान यदि खेत में किसी भी प्रकार का खरपतवार है तो उसे निकाल देना चाहिए। 

जब अदरख के पौधों की ऊंचाई 20-25 सेमी हो जाए तो पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ाना चाहिए। इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और अदरक का आकार बड़ा हो जाता है।

इस तरह से करें खाद का प्रबंधन

अदरक की फसल बेहद लंबी अवधि की फसल है, इसलिए इसमें पोषक तत्वों की हमेशा मांग रहती है। जमीन में पोषक तत्वों की मांग को पूरा करने के लिए बुवाई से पहले 250-300 कुन्टल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट की खाद को खेत में बिछा देना चाहिए। इसके साथ ही कंद रोपड़ के समय नीम की खली डालने पौधे में किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है और पौधा स्वस्थ्य रहता है। 

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इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों में 75 किग्रा. नत्रजन, किग्रा कम्पोस्टस और 50 किग्रा पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। 

इन उर्वरकों का प्रयोग करने के बाद  प्रति हेक्टेयर 6 किग्रा जिंक का प्रयोग भी किया जा सकता है। इससे फसल उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है।

ऐसे करें हार्वेस्टिंग

अदरक की फसल 9 माह में तैयार हो जाती है। जिसके बाद इसे भूमि से निकालकर बाजार में बेंचा जा सकता है। लेकिन यदि किसान को लग रहा है कि उसे उचित दाम नहीं मिल रहे हैं तो इसे जमीन के भीतर 18 महीने तक छोड़ा जा सकता है। 

ऐसे में यह फसल किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होती है। यह एक बड़ा मुनाफा देने वाली फसल है। ऐसे में  किसान भाई इस फसल को उगाकर लाखों रुपये बेहद आसानी से कमा सकते हैं।

जानें अदरक की कीमत में इतना ज्यादा उछाल किस वजह से आया है

जानें अदरक की कीमत में इतना ज्यादा उछाल किस वजह से आया है

जैसा कि हम जानते हैं, कि पूरे भारत में अदरक के भाव बेमौसम बारिश के कारण बढ़ रहे हैं। साथ ही, बंगाल में अदरक की कीमत में वृद्धि की वजह मणिपुर हिंसा है। वहां अदरक 12 से 15 हजार रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेचा जा रहा है। भारतीय रसोई में आपको और कुछ मिले ना मिले। लेकिन अदरक आपको अवश्य मिलेगा। भारतीय लोग सदियों से अदरक का उपयोग करते आ रहे हैं। इसे मसालों के अतिरिक्त एक औषधीय के तौर पर भी उपयोग किया जाता है। इसके अंदर जो गुण विघमान हैं, वह हमारे शरीर को वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने में बेहद सहायता करते हैं। परंतु, फिलहाल अदरक खरीदना आपके लिए काफी कठिन होने वाला है। दरअसल, मणिपुर हिंसा के उपरांत ही अदरक की कीमतों में इजाफा देखने को मिला है।

अदरक की कीमतों में उछाल की क्या वजह है

भारत के विभिन्न राज्यों में बैमौसम बरसात ने किसानों का काफी नुकसान किया है।
अदरक की खेती करने वाले किसानों को भी बेमौमस बरसात ने तबाह कर दिया है। दरअसल, इसकी वजह से अदरक की कीमतों में तीव्रता से उछाल आया है, जिसके कारण किसान अपने नुकसान की भरपाई भी कर रहे हैं। कुछ दिनों पूर्व भी महाराष्ट्र का एक वीडियो वायरल हो रहा था, जिसमें कुछ किसान अदरक के भाव में हुए इजाफे के कारण खुशी से नाचते दिखाई दे रहे थे।

अदरक के दामों में उछाल की एक वजह मणिपुर हिंसा भी है

जैसा कि हम जानते हैं, कि पूरे भारत में अदरक के भाव बेमौसम बारिश के कारण बढ़ते जा रहे हैं। साथ ही, बंगाल में अदरक के भाव में उछाल की वजह मणिपुर हिंसा है। दरअसल, मणिपुर हिंसा के उपरांत बंगाल में बाहर से अदरक नहीं पहुंच पा रहा है, जिसकी वजह से वहां अदरक के भावों में 6 से 7 हजार रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा देखने को मिल रहा है। यदि हम फुटकर भाव की बात करें, तो बंगाल की सब्जी मंडियों में अदरक 300 रुपये किलो के भाव से बेचा जा रहा है। ये भी पढ़े: घर के गमले में अदरक का पौधा : बढ़ाये चाय की चुस्की व सब्जियों का जायका

दक्षिण भारत में वाहनों के ना मिलने से अदरक की आवक में बाधा उत्पन्न हुई है

बंगाल सहित पूरे उत्तर भारत में अदरक दक्षिण भारत से भी पहुँचता है। परंतु, कर्नाटक चुनाव और मणिपुर हिंसा के कारण ढुलाई के वाहन भी नहीं मिल पा रहे हैं। इसकी वजह से किसान अपने अदरक को प्रदेश से बाहर नहीं भेज पा रहे हैं। यही कारण है, कि बंगाल समेत उत्तर भारत में भी अदरक की कीमत तीव्रता से बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों को लगता है, कि आगामी दिनों में अदरक का भाव और अधिक बढ़ सकता है। वैसे तो गर्मी के दिनों में अदरक की खपत कम होती है। परंतु, फिर भी यदि आपके घर में अदरक मौजूद नहीं है, तो बाजार से लाकर रख लें। क्योंकि, यह सब्जी में डालने के साथ-साथ सर्दी जुखाम के वक्त काढ़े बतौर भी उपयोग किया जाता है।
अदरक की इन उन्नत प्रजातियों की जुलाई-अगस्त में बुवाई कर अच्छा उत्पादन उठा सकते हैं

अदरक की इन उन्नत प्रजातियों की जुलाई-अगस्त में बुवाई कर अच्छा उत्पादन उठा सकते हैं

अथिरा: अथिरा अदरक की एक बेहतरीन प्रजाति है। बुवाई करने के उपरांत 220 से 240 दिन में इसकी फसल तैयार हो जाती है। अगर आप एक एकड़ में अथिरा किस्म की खेती करते हैं, तो 84 से 92 क्विंटल तक अदरक की पैदावार हो सकती है। 

अदरक एक औषधीय श्रेणी में आने वाली फसल है, जिसका इस्तेमाल खाने के साथ-साथ औषधियां बनाने में भी किया जाता है। यह सालों साल सुगमता से बाजार में मिल जाता है। 

हालांकि, मौसम के हिसाब से इसका भाव ऊपर- नीचे अस्थिर होता रहता है। परंतु, वर्तमान में अदरक ने महंगाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इसकी कीमत 250 से 300 रुपये किलो के मध्य पहुंच गई है। 

हालांकि, ऐसे इसका भाव 100 से 120 रुपये किलो के आसपास ही रहता है। ऐसी स्थिति में बहुत सारे किसान अदरक बेचकर लखपति बन चुके हैं। यदि आप अदरक की खेती करने के विषय में सोच रहे हैं, तो आज हम आपको इसकी चार ऐसी प्रजातियों के विषय में बताएंगे, जिससे बंपर उत्पादन मिलेगा।

अदरक की बुवाई किस प्रकार की जाती है

सामान्य तौर पर अदरक की बुवाई अप्रैल से मई महीने के दौरान की जाती है। अधिकतर किसान इन्हीं दो महीनों में अदरक की खेती करते हैं। परंतु, वर्तमान में मानसून की दस्तक के उपरांत भी इसकी बुवाई की जाने लगी है। 

यदि आप चाहते हैं, तो जुलाई और अगस्त माह के दौरान भी इसकी बुवाई की जा सकती है। इस वजह से अदरक की खेती करने वाले किसान इसकी बुवाई करने से पूर्व नीचे दी गई बेहतरीन किस्मों का चयन जरूर करें। यदि आप खरीफ सीजन में वैज्ञानिक विधि से इन प्रजातियों की खेती करते हैं, तो अच्छी आमदनी होगी।

अदरक की कुछ प्रमुख किस्में

सुप्रभा: सुप्रभा प्रजाति का छिलका सफेद और चमकीला सा होता है। यह कम समयावधि में पककर तैयार होनी वाली प्रजाति है। इसकी बुवाई करने पर आप 225 से 230 दिनों में फसल की पैदावार कर सकते हैं। 

विशेष बात यह है, कि इस प्रजाति में प्रकंद विगलन रोग नहीं लगता है। क्योंकि, इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा विघमान होती है। इसका उत्पादन 80 से 92 क्विंटल प्रति एकड़ है।

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सुरुची: इसी प्रकार सुरुचि किस्म का कोई तोड़ ही नहीं है। यह एक प्रकार की अगेती प्रजाति है। रोपाई करने के 200 से 220 दिन के समयांतराल पर फसल तैयार हो जाती है। बतादें कि इसकी औसतन ऊपज 4.8 टन प्रति एकड़ होती है।

नदिया: नदिया किस्म की खेती सबसे अधिक उत्तर भारत के किसान करते हैं। इसकी फसल को तैयार होने में काफी वक्त लगता है। 

गभग 8 से 9 महीने में नदिया किस्म की फसल पक कर तैयार हो जाती है। साथ ही, इसकी औसत पैदावार 80 से 100 क्विंटल प्रति एकड़ है। 

अथिरा: अथिरा अदरक की एक बेहतरीन प्रजाति है। बुवाई करने के पश्चात 220 से 240 दिन में इसकी फसल तैयार हो जाती है। 

यदि आप एक एकड़ में अथिरा प्रजाति की खेती करते हैं, तो 84 से 92 क्विंटल तक अदरक का उत्पादन हो सकता है। इससे लगभग 22.6 प्रतिशत सूखी अदरक 3.4 प्रतिशत कच्चे रेशे और 3.1 प्रतिशत तेल की मात्रा प्राप्त होती है। अधिकांश किसान इसी प्रजाति की खेती करते हैं।